Friday 27 April 2018

जिंदगी भी तो रेत की तरह है ...

खिल-खिलाती धूप में,
सरसराती छाँव में ,
लहलहाते , कुम्हलाते ,
हवा के झौंकों से ,
जीवन के कुछ पन्ने ,
मैं आज पलट रहा था...

चँद कोरे शब्द ,
अर्थ-हीन बातें ,
खत के रूप में तेरे नाम,
लिखी हुई कभी की मुलाकाते,
नाकाम आरजुओं की राख,
उन पन्नों से धुआँ बनके ,
उड़ी , मुड़ी , छिटक गई..
पकड़ना चाहा तो फिसल गई ,
ज़िंदगी भी तो रेत की तरह है...

मुट्ठी में पकड़ो तो
कहीं न कहीं से
फिसल ही जाती है…... ✍

Sunday 18 February 2018

बहुत मुश्किल...

बहुत मुश्किल होता है,
जीती हुई बाज़ी हारने के बाद,
एक हारी हुई ज़िन्दगी को जीते रहना..

बहुत मुश्किल होता है,
बिना किसी साथी के,
जीवन की कंटीली राहों से,
अकेले दामन बचाकर गुज़रना..

माना कि आसान होता है ये कह देना,
कि खुद को संभाल लेंगे हम,
यादों के सहारे जी लेंगे..
मगर बहुत मुश्किल होता है,
इतिहास बनी यादों के साथ,
तन्हा जीवन बसर करना..

बहुत मुश्किल..!!
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Wednesday 7 February 2018

Love undefined...

दिल.. पन्ने पलटने को,
आतुर है.. और...,
जिन्दगी को.. जिद है,
कि.. अध्याय पूरा हो...।🌹

Saturday 27 January 2018

उलझे सुलझे

""दिन भर के उलझे,गुंथे शब्द,
शाम आई, और सुलझना चाहते हैं।""

Saturday 30 December 2017

जाड़ों का मौसम...

जाड़ों का मौसम..

लो, फिर आ गया जाड़ों का मौसम ,
पहाड़ों ने ओढ़ ली चादर धूप की
किरणें करने लगी अठखेली झरनों से
चुपके से फिर देख ले उसमें अपना रूप ।

ओस भी इतराने लगी है
सुबह के ताले की चाबी
जो उसके हाथ लगी है ।

भीगे पत्तों को अपने पे
गुरूर हो चला है
आजकल है मालामाल
जेबें मोतियों से भरीं हैं ।

धुंध खेले आँख मिचोली
हवाओं से
फिर थक के सो जाए
वादियों की गोद में ।

आसमान सवरने में मसरूफ है
सूरज इक ज़रा मुस्कुरा दे
तो शाम को
शरमा के सुर्ख लाल हो जाए ।

बर्फीली हवाएं देती थपकियाँ रात को
चुपचाप सो जाए वो
करवट लेकर …

Monday 25 December 2017

अटल जी की रचना

भीड़ में खो जाना,
           यादों में डूब जाना,
           स्वयं को भूल जाना,
           अस्तित्व को अर्थ,
           जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इन्सानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
           किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
           कि पाँव तले दूब ही न जमे,
           कोई कांटा न चुभे,
           कोई कलि न खिले।

न वसंत हो, न पतझड़,
हों सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलापन का सन्नाटा।

          मेरे प्रभु!
           मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
           गैरों को गले न लगा सकूँ,
           इतनी रुखाई कभी मत देना।

- अटल बिहारी वाजपेयी

Saturday 16 December 2017

Love forever

मुफलिसी ही है ये मेरी अल्फाज़ो की

तुम्हे आज तक जो मैं लिख नही सका...

Friday 1 December 2017

गुलाबी ठंड

#इश्क़

सुनो
रात का पहर
चाँदनी का क़हर

गुलाबी ठंड
हम-तुम
साथ

कहो
हुआ ना
इश्क़ मुकम्मल...!!

Wednesday 8 November 2017

सूनी सूनी सी राहों में...

जाते हो तो साथ अपनी
यादें भी लेकर जाया करो...
चाहकर भी जाने क्यों
खिलखिला नहीं पाता हूँ..
बेचैनियों को परे हटा
तुम बिन धड़कनों का
सिलसिला नहीं पाता हूँ...
भारी गीली पलकों का
बोझ उठा नहीं पाता हूं
अब तो ....
सूनी सूनी सी राहों में
पल पल तेरा रस्ता देखूँ ....
दुआ में तेरी खुशियाँ माँगू
बस तुझको मैं हँसता देखूँ ...
तू हो न हो तेरा प्यार
इस दिल का हिस्सा है...
अब तो जीवन का हर पन्ना
बस तेरा ही किस्सा है...

Saturday 4 November 2017

तुमसे मिलने के बाद...

तुमसे मिलने के बाद,
दिल की इस बंजर ज़मीन पर,
मोहब्बत का एक पेड़ उग आया था,...
फिर हम उसके साए में मिला करते थे,
घंटों बातें किया करते थे,
वक्त गुज़ारा करते थे,....
लम्हे पे लम्हे इकठा होते गए,
उस पेड़ के पत्ते बनते गए,
हज़ारों लम्हों के हज़ारों पत्ते,
पेड़ घना होता गया,
और हरा होता गया,......
फिर एक दिन अचानक
तुम्हें जाना था,.......
बस,.......जाना था,....
वो लम्हे सारे जो एक-एक कर संजोये थे,
सब सूख गए,....
उस पेड़ से टूट गए,....
आखिरकार उन्होंने दम तोड़ दिया,
वहीँ, उसी ज़मीं में दफ़न हो गए,......
अब वहां से कोई नहीं गुज़रता,
आज भी उस उजड़े हुए पेड़ के पास,
कुछ रोने की आवाज़ें आतीं हैं,......
कहते हैं....
उन लम्हों की रूहें आज भी वहाँ भटकतीं हैं......